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मजदुर के बच्चो का बच्चपन.

मेरे विचार से .....................
मेरे विचार से .....................
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पड़ा रेत खेत में सड़क किनारे
मजदुर के बच्चो का बच्चपन पलता है.
लकीरे होती है हाथो में ,
पेरो में बिवाई फटती है ,
आटा नही बर्तन जिसके,
बस चूल्हे में लकड़ी जलती है ,
गुस्से के अंगार खा
उसका जीवन चलता है.

पड़ा रेत खेत में सड़क किनारे ,
मजदुर के बच्चो का बच्चपन पलता है.
आखिर कितना कोसु किस्मत को
बस चाहत इतनी रखता हूँ
मिल जाये एक काम भला
तोड़ूंगा में बेसक पत्थर,
बोरा उठाऊंगा सर पर,
चढ़ जाऊंगा 100 मंजिल भी
कुछ पैसे पाने को,
खुद भूखा रह जाऊंगा पर
बच्चो का बच्च्पन भूखा खलता है
पड़ा रेत खेत में सड़क किनारे
मजदुर के बच्चो का बच्चपन पलता है.
क्या होती है शिक्षा में क्या जानू,
बस भूख बिलखती दिखती है
एसो आराम के ख्वाब न देखूँ
जोरू की फ़टी बलाउज दिखती है
बेसक तंग है खुद की चादर
बेटी की शादी की सोच-2 दिल जलता है
पड़ा रेत खेत में सड़क किनारे
मजदुर के बच्चो का बच्चपन पलता है.

राजपाल सोलंकी
(Food Technologist)
लैब तकनीशियन निफ्टेम

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